0xb52dbd17
0xb52dbd17
श्री हनुमान चालीसा दोहा श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार ।बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ॥ चौपाई जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ राम दूत अतुलित बल धामा ।अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥ महाबीर बिक्रम बजरंगी ।कुमति निवार सुमति के संगी ॥ कंचन बरन बिराज सुबेसा ।कानन कुंडल कुँचित केसा ॥ हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे ।काँधे मूँज जनेऊ साजे ॥ शंकर सुवन केसरी नंदन ।तेज प्रताप महा जगवंदन ॥ विद्यावान गुनी अति चातुर ।राम काज करिबे को आतुर ॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।राम लखन सीता मनबसिया ॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा ।विकट रूप धरि लंक जरावा ॥ भीम रूप धरि असुर सँहारे ।रामचंद्र के काज सवाँरे ॥ लाय सजीवन लखन जियाए ।श्री रघुबीर हरषि उर लाए ॥ रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई ॥ सहस बदन तुम्हरो जस गावै ।अस कहि श्रीपति कंठ लगावै ॥ सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।नारद सारद सहित अहीसा ॥ जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।कवि कोविद कहि सके कहाँ ते ॥ तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा ।राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥ तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना ।लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥ जुग सहस्त्र जोजन पर भानू ।लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥ प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही ।जलधि लाँघि गए अचरज नाही ॥ दुर्गम काज जगत के जेते ।सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ राम दुआरे तुम रखवारे ।होत ना आज्ञा बिनु पैसारे ॥ सब सुख लहैं तुम्हारी सरना ।तुम रक्षक काहु को डरना ॥ आपन तेज सम्हारो आपै ।तीनों लोक हाँक तै कापै ॥ भूत पिशाच निकट नहि आवै ।महावीर जब नाम सुनावै ॥ नासै रोग हरे सब पीरा ।जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥ संकट तै हनुमान छुडावै ।मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥ सब पर राम तपस्वी राजा ।तिनके काज सकल तुम साजा ॥ और मनोरथ जो कोई लावै ।सोई अमित जीवन फल पावै ॥ चारों जुग परताप तुम्हारा ।है परसिद्ध जगत उजियारा ॥ साधु संत के तुम रखवारे ।असुर निकंदन राम दुलारे ॥ अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।अस बर दीन जानकी माता ॥ राम रसायन तुम्हरे पासा ।सदा रहो रघुपति के दासा ॥ तुम्हरे भजन राम को पावै ।जनम जनम के दुख बिसरावै ॥ अंतकाल रघुवरपुर जाई ।जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥ और देवता चित्त ना धरई ।हनुमत सेई सर्व सुख करई ॥ संकट कटै मिटै सब पीरा ।जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥ जै जै जै हनुमान गुसाईँ ।कृपा करहु गुरु देव की नाई ॥ जो सत बार पाठ कर कोई ।छूटहि बंदि महा सुख होई ॥ जो यह पढ़े हनुमान चालीसा ।होय सिद्ध साखी गौरीसा ॥ तुलसीदास सदा हरि चेरा ।कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥ दोहा पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥ ॥ सियावर रामचन्द्र की जय ॥॥ पवनसुत हनुमान की जय ॥॥ उमापति महादेव की जय ॥॥ बोलो रे भई सब सन्तन की जय ॥